असली बादशाह कौन है ? { आध्यात्मिक कहानी 6 }

आध्यात्मिक कहानी

एक लड़का पृथ्वी पर लेटा हुआ था और उधर बादशाही की सवारी आ रही थी । तब वजीर ने कहा बच्चे एक तरफ हट जा । बादशाह की सवारी को आगे जाने दे । तब बच्चे ने कहा कौन बादशाह कैसा बादशाह । अरे उस बादशाही में भय का डेरा लगा हुआ है जो बचपन कुमार, जवानी अशांत रहने वाला कैसे बादशाह हो सकता है । बच्चे ने कहा बादशाह तो मैं हूं । वह तो जन्मने मरने वाला ताश का बादशाह है । आज बादशाही इसके पास है कल नहीं रहेगी और मेरी बादशाही सदा मेरे पास रहेगी और मेरी बादशाही अजर अमर अविनाशी है और तेरे बादशाह की बादशाही विनाशी है वजीर ने सोचा यह लड़का सच बोल रहा है । यह कोई अद्भुत साधु बोल रहा है तब फिर उस बालक ने कहा तेरा बादशाह तो जन्मने मरने वाला है और मैं तो अजन्मा हूं । वजीर यह बातें सुनकर आश्चर्य में रह गया और बादशाह को सारी बात कह दी । बादशाह स्वयं पालकी से उतरकर उसके पास आया और बादशाह बच्चे को कहने लगे ।

बच्चे तू कैसे बादशाह है तेरे पास तो कुछ भी नहीं है और मेरे पास तो सब कुछ है । तब लड़का कहने लगा । राजन जो कुछ तेरे पास है वह तेरा नहीं है वह कल किसी और का होगा । और जो मेरे पास है वह मेरा ही रहेगा । यह मेरे माल को ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी नहीं छीन सकते । राजा ने सोचा लड़का बहुत बुद्धिमान और विचार मान है । इसको अपना लड़का बना लेना चाहिए । तब राजा ने कहा बेटा तुम मेरा बेटा बनना चाहोगे । तब लड़के ने कहा राजन तुम मुझे कौन सा सुख दे सकोगे । तब राजा ने कहा बेटा जो मैं खाऊंगा वहीं तुम्हें खिलाऊंगा । जो मैं पहनूंगा वही तुम्हें पहनाऊंगा । सुंदर सेजो पर सोता हूं सुंदर सेज पर सुलाऊंगा । और भी जो सुख मुझे प्राप्त होंगे वह सब सुख तुम्हें दूंगा ।

तब लड़के ने कहा राजन जिसने मुझे पहले बेटा बना कर रखा है उसने मुझ पर इतनी कृपा दृष्टि कर रखी है जिसका मुझे अंत नहीं । वह मुझे खिलाता है आप नहीं खाता, मुझे सुलाता है आप नहीं सोता, मुझे कपड़े पहनाता है आप नहीं पहनता क्या तुम ऐसा कर सकोगे । राजा ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकूंगा । तब लड़का कहने लगा । पहले मालिक को छोड़कर दूसरा मालिक बनाना तो पहले मालिक की तोहीन है तब राजा ने कहा हां बच्चे मैं भी खाऊंगा तुम्हें भी खिलाऊंगा । मैं भी पहनूँगा तुम्हें भी पहनाऊंगा । तब लड़के ने कहा राजन वह मेरे लिए सब कुछ करता है । अपने लिए कुछ नहीं करता क्या तू ऐसा कर सकेगा ।

तब राजा ने कहा मेरे बच्चे क्या तू अपने मालिक के दर्शन करा सकते हो । तब बच्चे ने कहा कि मेरा मालिक मेरे अंग-अंग हर घड़ी हर काल मेरे पास रहता है । हे राजन देख सकते तो देखो । मेरी आंखों की बल्वों में ताक-झांक कर रहा है । कानो में बैठा हुआ शब्द सुन रहा है । नासिका में बैठा हुआ सूंघ रहा है, वाणी से बोल रहा है । सांस और प्राणी की गाड़ी चला रहा है । स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीर के कपड़े पहन रहा है, निर्गुण निराकार होने के कारण आप कपड़े नहीं पहनता । आप कुछ नहीं पहनता । आप कुछ नहीं खाता हमें खिला रहा है, आप नहीं सोता हमें सुला रहा है । हे राजन प्रत्यक्ष रुप से तेरे सामने हैं पर तेरे जैसे देहाभिमानी राजा उसे प्राप्त नहीं कर सकते । तेरे मेरे में इतना ही अंतर है तुम देखो मैं मानता हो और मैं आत्मा को मैं मानता हूं । शरीर को मैं मानने वाला जन्म मरण की ठोकरें खाता रहता है और मैं आत्मा का निश्चय करने वाला सदा के लिए अजर अमर अविनाशी पल में निवास करता है । तुम मुझे पांच भौतिक शरीर समझ रहे हो । मैं पांच भौतिक शरीर नहीं मैं पंचभूतों का भूतनाथ हूं । जब तक तुम देहाभिमान का त्याग नहीं करोगे तुम उसको नहीं पा सकोगे ।

जिस पर उसकी कृपा दृष्टि हो जाती है वह अमंगल से मंगल रूप हो जाता है । जैसे सागर नदियों को अपने में मिलाकर एक रूप कर लेता है । ऐसे वह परमात्मा भी 8400000 नामरूप नदियों को अपने में मिलाकर के 1 रूप कर लेता है । जैसे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती का नाम उड़ जाता है सागर हो जाता है । ऐसे जीव भी अपने नाम रूप को उड़ाकर उसी का रुप हो जाता है । हे राजन अपनी लगन भी हो उसकी कृपा दृष्टि हो काम बन जाता है लोग कहते हैं कि प्रभु कृपा नहीं करता । सुंदर तन, सुंदर मन, सुंदर परिवार कृपा नहीं तो क्या है । राजा नतमस्तक हो गया ।

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