२. कर्मकारक (द्वितीया विभक्ति) १. सूत्र- “कर्तुरीप्सिततम कर्म कर्मणि द्वितीया” अर्थात् जिसके ऊपर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है, उसे कर्मकारक कहते हैं। जैसे- मैं राम को देखता हूँ। इस वाक्य में देखने के व्यापार का फल ‘राम’ पर पड़ रहा है, अतः ‘राम’ में कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ है, किन्तु यह कभी-कभी छिपा भी रहता है। जैसे- राम पुस्तक पढ़ता है। कर्तृवाच्य में कर्मकारक में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे- रामः ग्रन्थं पठति । किन्तु कर्मवाच्य के कर्म में प्रथमा विभक्ति ही होती है। जैसे- रामेण ग्रन्थः पठ्यते…
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