आध्यात्मिक कहानी । गौ महिमा और संत का मूल्य

एक दिन च्यवन ऋषि संगम में खड़े होकर तपस्या कर रहे थे । एक बार मछुआरों ने संगम में बहुत बड़ा जाल लगाया । जब उन्होंने जाल को बाहर खींचा, तो उसमें कई जलीय जंतुओं के साथ ऋषि को भी देखा । जब मछुआरों ने ऋषि को देखा, तो हाथ जोड़कर उनसे माफी मांगने लगे । पर ऋषि ने कहा कि इन जीवो को छोड़ दो, तभी मैं भी जीवित रह पाऊंगा ।

यह बात राजा नहुष तक पहुंची । राजा ऋषि के प्रताप से परिचित थे । वह दौड़े-दौड़े ऋषि के पास आए और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा, ‘ऋषिवर क्या आज्ञा है?’ ऋषि ने कहा, ‘ये मछलियां मछुआरों की रोजी-रोटी का साधन है । मछुआरों को इनका मूल दें और इन्हे मेरा मूल्य भी दिया जाए ।’ राजा ने कहा, ‘ठीक है, मैं एक हजार मोहरे मछुआरों को दे देता हूं ।’ च्यवन ऋषि ने का, ‘क्या मेरा मूल्य इतना ही है?’ जब राजा घबरा गए और बोले, ‘मैं पूरा राज्य की उन्हें दे देता हूं ।’ ऋषि प्रसन्न हो गए, पर उन्होंने राजा से कहा, ‘मेरा मूल्य किसी ऋषि से पूछो, वह तुम्हें बता देंगे ।’ राजा वहां गोजात मुनि के पास गए । इन्होने मुस्कुराकर कहा, ‘राजन्, जिस प्रकार धरती पर गाय अमूल्य है । उसी प्रकार संत अमूल्य है । इसलिए तुम गोदान करके मूल्य चुका सकते हो ।

तब राजा ने ऋषि च्यवन को एक दुधारू गाय दान में देते हुए कहा, ‘हे तपस्वी, में इस गौ के माध्यम से आप का मूल्य चूका रहा हूं । इसके अतिरिक्त दूसरा श्रेष्ठ धन मुझे पृथ्वी पर नहीं दिखाई दे रहा हे ।

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