ईश्वर और उसकी सर्वव्यापी महिमा को याद रखने के लिए माला की जरूरत तुम्हें सदैव अपने गले में या जेब में माला रखनी चाहिए तथा रात को सिरहाने के नीचे उसको रख लेना चाहिए । जब तुम माया अथवा अविद्या के कारण ईश्वर का विस्मरण कर दोगे तो माला उसका तुम्हें पुन: स्मरण कराएगी । रात की जब तुम लघुशंका के लिए उठते हो, तव माला तुन्हें याद दिलगी कि तुम उसको एक दो बार फेर लो । मन कौ वश में करने के लिए माला एक उत्तम उपकरण है…
Read MoreAuthor: Vivek Bhardwaj
मन्त्र जप के लिए तीन प्रकार की बैठकें
उषाकाल तथा गोधूलि की बेला में एक रहस्यमय आध्यात्मिक वातावरण कर्मशील रहता है ओर एक अदभुत आकर्षण होता है । अतः इन दोनों संधिकालों में मन सीघ्र ही पवित्रता को प्राप्त होने लग जायगा । और सत्व से परिपूरित हो जायगा । सूरज निकलने और डूबने के समय चित्त को एकाग्र करना बहुत ही सुगम होता है । अतः जप का अभ्यास संधिकाल में करना चाहिए । इस समय चित्त एकदम शान्त और तजा होता है । अत: ध्यान लगने में सरलता होती है ध्यान जीवन का अनिवार्य उत्तरदायित्व है…
Read Moreमंत्र का जप करते समय मन को एकाग्र कैसे करते है
तुम हृदय-कमल ( अनाहत चक्र ) पर अपने चित्त को स्थिर कर एकाग्र करो, या दोनो भ्रकुटीओ के मध्य का स्थान आज्ञा चक्र कहलाता है उस पर करो । हठयोंगियो के अनुसार आज्ञा चक्र मस्तिष्क का स्थान है । यदि कोई मनुष्य आज्ञा चक्र पर चित्त को लगा कर उसे एकाग्र कर लेता है तो उसका मस्तिष्क सुगमता से उसके वश में हो जाएगा । अपने स्थान पर बैठ जाओ । आँखे बन्द कर लो और जप तथा ध्यान करना आरम्भ कर दो । जब कोई दोनों भृकुटिओ के बीच…
Read Moreमंत्र जप के लिए आसन व दिशा की आवश्यकता
जप के लिए आसन:- मंत्र जप आधे घंटे से लेकर प्रारम्भ करना चाहिए पदम, सिद्ध सुखासन अथवा स्वस्तिक आसन पर बैठो । धीरे धीरे करके मंत्र जप का समय बढाते जाओ और तीन घंटे तक कर दो लगभग एक साल के अन्दर तुम को – आसन-सिद्धि प्राप्त हो जायेगी, अर्थात् तुम्हें उस विशेष श्रासन पर बैठने से कष्ट नहीं प्रतीत होगा । सुम स्वाभाविक रूप से ही उस आसन पर बैठ जाया करोगे । शरीर को किसी भी सरल तथा सुखपूर्वक अवस्था में स्थिर रखने को आसन कहते हैं-स्थिरम सुखमासनम्…
Read Moreआध्यात्मिक साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त तथा इष्ट देवता की आवश्यकता
आध्यात्मिक साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त की आवश्यकता:- ब्रह्ममुहूर्त में प्रातःकाल चार बजे उठो । ब्रह्ममुहूर्त का काल आध्यात्मिक साधना के लिए और जप करने के लिए सबसे अच्छा समय है । प्रातःकाल हमारा चित्त सर्वथा ताजा, पवित्र, स्वच्छ तथा बिलकुल शांत होता है । इस समय मष्तिष्क बिलकुल कोरे कागज की भांति होता है । और दिन की अपेक्षा सांसारिक कार्यों से अधिक स्वतन्त्र होता है । इस समय हम चित्त को किसी भी कार्य में सुगमतापूर्वक लगा सकते हैं । इस विशेष समय पर वातावरण में अधिक सत्व…
Read Moreईश्वर साधना के लिए ध्यान के कमरे की आवश्यकता
ध्यान करने का कमरा बिल्कुल अलग रहना चाहिए और उसमें ध्यान करने के समय के अतिरिक्त पूरे समय ताला पडा रहे । उस कमरे में कोई भी नहीं जाना चाहिए । प्रातःकाल और संध्या को उसमें धूप जला दो । उसमें श्री कृष्ण जी की एक मूर्ति या अपने देवता की तस्वीर रखो । तस्वीर के सामने आप आसन बिछा दो । जब तुम उस कमरें में बैठ कर मन्त्र का जप करोगे, तो जो शक्तिशाली स्पन्दन उससे उठेंगे, वे कमरे के वातावरण में ओतप्रोत हो जायेंगे । छ: महीने…
Read Moreआत्म-शुद्धि और ईश्वर के दर्शन के लिए गुरु की आवश्यकता
गुरु की आवश्यकता:- गुरु की आवश्यकता अकथनीय हैं । आध्यात्मिक मार्ग चारों ओर से कठिनाइयों से आकीर्ण है । गुरु साधक को उचित मार्ग का निदर्शन करा देगा और इससे सब कठिनाइया और विघ्न – वाधाए दूर हो जाएगी है । गुरूमुख से सुने गए शब्दों में पूर्ण श्रद्धा रखो:- गुरु, ईश्वर, ब्राह्मण , सत्य तथा ॐ एक ही है । गुरु की सेवा भक्तिसहित करो । उसको सब प्रकार से प्रसन्न रखो । अपने चित्त को पूर्णत: गुरु की सेवा में लगा दो । उनकी आज्ञा का पालन अटूट…
Read Moreगायत्री पुरश्चरण के सम्बन्ध में कुछ ज्ञातव्य बातें
Some important things regarding Gayatri Purshacharan गायत्री पुरश्चरण:-ब्रह्मा गायत्री में २४ अक्षर होते हैं । अतः गायत्री के एक पुरश्चरण में २४ लाख गायत्री का जप करना होता है । पुरश्चरण के अनेक नियम हैं । २४ लक्ष जप जब तक पूरा न हों जाय बराबर नियम पूर्वक ३००० गायत्री का जप किये जाओ । गायत्री पुरश्चरण के सम्बन्ध में नियम:- १–प्राचीन काल में हिन्दू स्त्रियाँ भी यज्ञोपवीत धारण करती थीं और गायत्री का जप करती थीं किन्तु मनु इसके विरूद्ध हैं । २–पुरश्चरण समाप्त हो जाने के उपरान्त हवन…
Read Moreगायत्री पुरश्चरण के द्वारा माँ गायत्री के दर्शन
गायत्री पुरश्चरण ब्रह्मा गायत्री में २४ अक्षर होते हैं । अतः गायत्री के एक पुरश्चरण में २४ लाख गायत्री का जप करना होता है । पुरश्चरण के अनेक नियम हैं । २४ लक्ष जप जब तक पूरा न हों जाय बराबर नियम पूर्वक ३००० गायत्री का जप किये जाओ । इस तरह अपने मानस रूपी दर्पण का मल हटाकर आध्यात्मिक बीज बोने के लिए खेत तैयार करो । महाराष्ट्र ब्राह्मणो को गायत्री पुरश्चरण करने के बड़ी रुचि होती है । महाराष्ट्र देश के पूना आदि कई नगरों में ऐसे अनेक…
Read Moreगायत्री मंत्र की उत्पत्ति
गायत्री मंत्र का प्रादुर्भाव:- (मनुस्मृति, अध्याय २) मनुस्मृति के द्वतीय अध्याय में लिखा है । कि ब्रह्मा जी ने तीनों वेदो को दुह कर क्रम से अ, उ और म् अक्षरों की निकाला जिनके योग से प्रणव का प्रादुर्भाव हुआ ओर जिनके साथ भू: भुवः ओर स्व: नामक । रहस्यपूर्ण व्यहति का भी उदय हुआ हैं जिनसे पृथ्वी आकाश स्वर्ग का बोध होता है । इसी तरह ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों से गायत्री को भी निकाला जिसकी पवित्रता और शक्ति अचिन्त्य है । यदि कोई द्विजाति एकांत में प्रणव…
Read More