जानें, लिखित जप किसे कहते है और उसके नियम व लाभ क्या है
लिखित जप:-प्रतिदिन अपना गुरु मन्त्र अथवा इष्टमंत्र अपनी नोट बुक लिखने को हम लिखित जप कहते है ।
मनुस्मृति में जप करने के जो भिन्न-भिन्न उपाय बताए गए हैं, उनमें लिखित जप का प्रभाव सबसे अधिक होता है । लिखित जप चित्त क़ो एकाग्र करने में सहायता करता है और धीरे-धीरे साधक क़ो ध्यान की ओर अग्रसर कराता हैं ।
लिखित जप में प्रतिदिन अपना गुरु मन्त्र अथवा इष्टमंत्र अपनी नोट बुक में लिखो । इस अभ्यास में कम से कम अधा घंटा लगाओ । मन्त्र लिखते समय मोन धारण करना चाहिए । मंत्र साफ-साफ श्याही से लिखो । रविवार या अन्य अवकाश के दिनों में एक घंटे तक और अधिक इसका अभ्यास करो । अपने मित्रो को भी इस साधना के लिए प्रेरित करो । इससे अन्तः करण क़ो अपूर्व धारणा शक्ति प्राप्त होती है । अपने परिवार के लोगो क़ो भी इसका अभ्यास कराओ । लिखित जप से साधारण जप की अपेक्षा कई गुना अधिक लाभ प्राप्त होता है । यहाँ पर लिखित जप का एक रूप प्रस्तुत किया जा रहा है । साधक क़ो इस के अनुसार मंत्र लिखना चाहिए ।
साधक क़ो अपने आराध्य का मंत्र निश्चित कर लेना चाहिए । इसी मंत्र के लिखित या मौखिक जप का अभ्यास करना चाहिए । मौखिक जप के लिए माला आवश्यक है । लिखित जप के लिए एक नोट बुक ऒर एक कलम । मंत्र लिखने के लिए किसी लिपि-विशेष की आवश्यकता नहीं है- जिस भाषा में संभव हो, उसी में मंत्र लिख सकते हो । मंत्र लिखते समय निम्नलिखित नियम का पालन करो ।
लिखित जप के नियम:-
(१). एक ही समय पर नियमपूर्वक मंत्र लिखो । इससे साधक को आगे बढ़ने में सहायता मिलेगी ।
(२). शारीरिक और मानसिक पवित्रता धारण करों । मन्त्र लिखने के पूर्व हाथ, पैर ऒर मुँह धो डालो । अभ्यास करने के पूर्व अपने चित्त को निष्कलंक बनाने का प्रयत्न करो । मंत्र लिखते समय सासांरिक विचारो क़ो दूर हटाने की चेष्टा करो ।
(३). जहाँ तक हो सके मंत्र लिखते समय एक ही आसन पर बैठो । बार बार आसन नहीं बदलना चाहिए । एक ही आसन पर बैठे रहने से सहनशीलता में बृद्धि होगी ।
(४). लिखित जप का अभ्यास करते समय मोन धारण करलो । अधिक बोलने से शक्ति का अपब्यय होता हे और समय व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है । मौन धारण करने से शक्ति की वृद्धि तो होती ही है, साथ – साथ कार्य में भी प्रगति आ जाती है ।
(५). इधर-उधर मत देखो । अपनी आँखों को नोटबुक पर अंकित रखो । इससे चित्त को एकाग्र करने में अत्यन्त अधिक सहायता मिलेगी ।
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(६). मंत्र लिखते समय मंत्रोउच्चारण करते रहो । इससे तुम्हरे अंतःकरण पर तीनो प्रकार के संस्कार अंकित हो जायेगे । क्रमशः तुम्हरा सम्पूर्ण शरीर और आत्मा ही मंत्र मय हो उठेगा ।
(७). जब तुम मन्त्र लिखने के लिए बैठते हों तो यह निश्च्य कर बैठो कि तुम अमुक संख्या में मंत्र लिख कर ही उठोगे । इससे तुम सदैव लिखित जप का अभ्यास करते रहोगे और कभी भी ऐसा नहीं होगा कि तुम मंत्र लिखना छोड़ दो ।
(८). जब तक निश्चित संख्या में जप लिख न डालो लिखना न छोड़ो अपने आसन से न उठो । मंत्र लिखते समय अपने को सांसारिक विचरो के साथ उलझने न दो, अन्यथा साधना में रूकावट उपस्थित हो जायेगी । एक बार बैठो तो कम से कम एक घएटे तक मंत्र लिखते रहो है ।
(९). चित्त को एकाग्र करने के लिए यह आवश्यक है कि लिखने कि प्रणाली एकसार होनी चाहिए । सम्पूर्ण मंत्र एक ही बार में लिखना चाहिए । अब लाइन पूरी होने से पहले ही मंत्र के अधूरे छूटने की संभावना है तो मंत्र को दूसरी लाइन से लिखना आरम्भ कर दो ।
(१०). जप के लिए जिस मन्त्र को तुमने एक बार चुन लिया हैं उसी का जप करते रहो मंत्र को बार-बार बदलना उचित नहीं है ।
उपरलिखित नियामें का परिपालन करोगे तो अध्यातमिक उन्नति सवेग होगी । चित्त सुगमता पूर्वक एकाग्र हो सकेगा । निरन्तर अभ्यास करने से तुम्हरी सुप्त मंत्र शक्ति जाग पड़ेगी ओर तुम मन्त्र की दिव्य शक्ति से उज्जवल हो उठोगे ।
नोट बुक को संभाल कर रखना चाहिए, उसके प्रति आदर भाव बरतना चाहिए । जब एक नोट बुक लिख चुकते हो तो उसको किसी संदूक में बंद करके अपने ध्यान के कमरे अपने इष्ट देवता की तस्वीर के सम्मुख रख दो । मन्त्र की कापी की उपस्थिति तुम्हरे ध्यान के कमरे में आध्यात्मिक वातावरण को स्थिर बनाए रखेगी ।
लिखित जप के लाभ:-
लिखित जप के लाभ कहे नहीं कहे जा सकते । लिखित जप से चित्त एकाग्र होता है ओर ह्रदय पबित्रता से भर जाता है । मन्त्र लिखने के अभ्यास से एक आसान में बैठने का अभ्यास होता है । इन्द्रिया वश में हो जाती है । शीघ्र मानसिक शांति की प्राप्ति होती है । मंत्र-शक्ति के द्वारा तुम ईश्वर के समीप पहुंचते हों । इन लाभों का अनुभव हम अभ्यास द्वारा ही कर सकते हैं । जो लोग इसका अभ्यास अभी तक नहीं करते,उनकों आज से ही अभ्यास आरम्भ कर देना चाहिए । यदि लोग नित्य आधा घंटा भी इसका अभ्यास करते हैं तो छ: महिने में उसको इन लाभों के अनुभव हो जाएगे ।