Chhath Puja: सूर्य की कृपा पाने का पर्व छठ

Chhath Puja: सूर्य की कृपा पाने का पर्व छठ

नहाए-खाए के साथ ही छठ पर्व आरंभ हो जाता है। खरना और सभी श्रद्धालु जलाशय के तट पर डूबते और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ देकर खुशहाली की कामना सूर्यदेव से करते है।

छठ पूजा का महत्वा

वेदों और पुराणों में भगवान सूर्य को प्रमुख स्थान दिया गया है। इन्हें सूर्य नारायण की भी कहा गया है और बताया गया है कि इनकी कृपा साधक के जीवन में उन्नति कीर्ति और आरोग्यता लेकर आती है। इन्हीं को समर्पित है देश का महान लोक पर्व छठ।

चार दिनों का यह अनुष्ठान भले ही बदलते दौर में थोड़ा परिवर्तित हो गया है, लेकिन आज भी भक्तों के बीच इसे लेकर वैसी ही आस्था है।

हर साल 2 बार मनाया जाने वाला यह पर्व कार्तिक की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व को हर आयु वर्ग के लोग करते हैं पर विशेषकर स्त्रियों के लिए यह पर्व परिवार एवं बच्चों की सुरक्षा की कामना का होता है।

आदिकाल से इस पर्व की महत्ता बरकरार है और ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने सूर्य उपासना के द्वारा भगवान सूर्य को प्रसन्न किया था और रावण पर विजय पाई थी। इसी तरह महाभारत काल में दानवीर कर्ण ने सूर्य उपासना द्वारा अजेय कवच और कुंडल प्राप्त किए थे।

इस पर्व के संबंध में एक और मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने राज्याभिषेक के पश्चात माता सीता के साथ तेजस्वी पुत्र रत्न प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम यह सूर्य षष्ठी व्रत किया था । ऐसी भी पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन ऋषि विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र प्रस्फुटित हुआ था। इसलिए आज के दिन गायत्री माता की उपासना का विधान है। छठ पर्व को लेकर च्यवन ऋषि एवं उनकी पत्नी सुकन्या की कथा प्रचलित है। कुल मिलाकर आज भी छट पर्व उसी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाए जाने की परंपरा है।

यह इस पर्व की महिमा ही है कि इसे विश्व भर में समस्त मनोकामना की पूर्ति की कामना के लिए विधि विधान से मनाया जाता है।

पूजन विधि

छठ पूजा में उपासना पूजा, अर्घ्य, पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। चार दिनों तक चलने वाले इस लोक पर्व के पहले दिन व्रती गंगा स्नान कर गंगाजल लाते हैं। दूसरे दिन उपवास रखकर रात में अन्न ग्रहण करते है। दूसरे दिन प्रसाद में गुड़, दूध एवं चावल की खीर बनाकर भोग लगाने की परंपरा है। तीसरे दिन व्रती पीले वस्त्र धारण कर, हाथ में खाधान्नों से भरे सूप हाथ में लेकर जलाशय में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य की उपासना करते हैं और फिर चौथे दिन उगते सूर्य की पूजा करके पारण हैं।

अर्घ्य मंत्र

ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगतपते।
अनुकम्पय भक्त्या गृहनार्घ्य दिवाकरः।।

सूर्य देवता से अपनी गलतियों को माफ करने के लिए भी भक्त इस मंत्र से प्रार्थना करते हैं

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभयम भास्कर नमोस्तुते।।

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