जाने वृक्षों के शुभ-अशुभ प्रभाव व धार्मिक महत्व

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वृक्षायुर्वेद में वृक्षों से होने वाले आध्यात्मिक लाभ का उल्लेख है । पीपल, बेल, देवदार, आंवला आदि जैसे कुछ वृक्ष शुभ माने जाते हैं, जबकि इमली और खजूर अशुभ बताए गए हैं ।

आयुर्वेद में वृक्षों की महिमा को एक अलग विषय के रूप में स्वीकार किया गया है । गीता में श्रीकृष्ण ने वृक्षों में अस्वस्थ को ही अपना स्वरूप बताया है । इसी तरह छठी सदी के आसपास संपादित हुए वामन पुराण में देवताओं से वृक्षों की उत्पत्ति का प्रसंग मिलता है ।

हमारे देश में वृक्षों से जुड़े कई पर्व-त्योहारों का वर्णन मिलता है । आंवला नवमी,अरण्य दशमी, अशोक कलिकाभक्षण,अशोक प्रतिपदा, अशोक अष्टमी आदि ।

वृक्षों के शुभ अशुभ प्रभाव

ब्रह्म वैवर्त पुराण के आष्णजन्मखंड में वृक्षों की मंगलमयता का वर्णन मिलता है । स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने श्रीकृष्ण से कहा था कि ग्रहस्थो के आश्रम में नारियल का वृक्ष लगाने से उन्हें धन मिलता है । यदि यही वृक्ष ईशान कोण या पूर्व दिशा में होता है, तो संतान प्राप्ति होती है । अगर घर में पूर्व दिशा में आम का पेड़ हो, तो संपत्ति मिलती है । वैसे इमली के वृक्ष को बुद्धि और विद्या का विनाशक माना गया है तथा खजूर व अन्य कांटेदार वृक्षों को घर में अनिष्टकारी बताया गया है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वृक्षों की पूजा से नक्षत्र भी शांत होते हैं । विभिन्न ग्रंथों में कहा गया है कि विभिन्न नक्षत्रो में वृक्षों की उत्पत्ति हुई है ।

वृक्षों का धार्मिक महत्व

अश्वनी में बांस, भरणी में फालसा, कृतिका में गूलर, आद्रा में बहेड़ा, पुष्य में पीपल, उत्तरा फाल्गुनी में पाकड़, चित्रा में बेल, स्वाति में अर्जुन, अनुराधा में मौलश्री, शतभिषा में कदंब, उत्तरा भाद्रपद में नीम, रेवती में महुआ की उत्पत्ति हुई है । इसी तरह कुल 27 नक्षत्रों में 27 वृक्षों की उत्पत्ति की बात हमारे धार्मिक ग्रंथों में कही गई है ।

ग्रहों के दोषों से मुक्ति के उपाय

ज्योतिष रत्नमाला में वृक्षों के जल से स्नान करने वालों को नौ ग्रहों के दोष से मुक्त हो जाने की बात कही गई है । इसके अनुसार यदि किसी जातक का सूर्य अशुभ हो, तो उसे बड़ी इलायची, देवदार, कुमकुम, केसर खस, मधुमक्खी, कमल और लाल पुष्पों से स्नान करने से लाभ होता है ।

इसी तरह यदि मंगल अशुभ हो, तो बिल्व, चंपक, बालारुण के फूल, हिंगलु कल्क व बकुल से स्नान करने पर दोषों का निवारण हो जाता है । यदि बुध अनिष्टकारी हो, तो जातक को अक्षत, गोबर, कमल, फल-चंदन, शहद, सीप, भावमूल और स्वर्ण से स्नान किए जाने पर बुद्ध शुभदाई हो जाता है । अगर गुरू अशुभ फलदाई हो, तो मालती के फूल, सफेद सरसों, शहद और मनःषिला को स्नान के पानी में मिलाकर उस पानी से नहाने से गुरु के सारे दोषो से आप मुक्त हो जाते हैं ।

अगर शनि अशुभ हो, तो जातक को काले तिल अंजन लोध्र, बला, शोफ, धान्य के लावको को पानी में डालकर उस पानी से स्नान कराना चाहिए । वही राहु-केतु के अशुभ होने पर अन्य वस्तुओं के साथ कुश एवं तिल के पत्ते स्नान के पानी में मिलाकर नहाना चाहिए । इस तरह वृक्षों का हमारे लिए धार्मिक महत्व है और ऐसा माना जाता है कि वृक्ष की पूजा करने या उसका उपयोग विभिन्न दोषों को दूर करने में किए जाने से रत्न धारण करने के समान लाभ लिया जा सकता है ।

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