जप द्वारा सिद्ध हुए महात्मा गण

जप द्वारा सिद्ध हुए महात्मा गण

तुलसीदास, रामदास, कबीर, मीराबाई, बिल्लवमंगल (सूरदास), गौरांग प्रभु, गुजरात में नरसिंह महेता अदि अनेक महात्मो को जप और अनन्य भक्ति द्वारा ही, भगवतदर्शन हुए थे ! जैसे इनको सफलता मिली वैसे ही हे मित्रो आपको मिल सकती है । जो गाना जानते हो वे लय के साथ मन्त्र का गान करे । मन इससे शीघ्र ही उन्नत पहुँच जायगा । जैसे रामप्रसाद बंगाली ने एकान्त में बैठकर भगवान के नाम का गान किया था वैसे ही बैठ कर आप भी गावें । गाते गाते भाव समाधि आ जाएगी । जम्टिस उडरफ ने मंत्र शास्त्र पर वर्णमाला ( Garland of letters ) नामक एक बड़ी सुन्दर पुस्तक लिखी है इसे पढ़कर आपको मंत्र की शक्ति का ज्ञान होगा । नारद ऋषि के उपदेश को मानकर मरा मरा जपकर डाकू रत्नाकर वाल्मीकि ऋषि हो गया ।

पंढरपुर के पंढ़रीनाथ केवल विट्ठल विट्ठल नाम जपते जपते देव के रहनेवाले संत तुकाराम को भगवान श्री कृष्ण के कई बार दर्शन हुए ।

छोटे से बालक ध्रुव ने भक्तिपूर्वक द्वादशाक्षर मंत्र किया और उसे साक्षात् नारायण के दर्शन हुए ।

नारायण का नाम जपने से प्रह्लाद को भगवन के दर्शन हुए । छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास ने ” श्रीराम ,जय राम ,जय जय राम ” मंत्र को गोदावरी के तट पर ताकली ग्राम में १३ करोड़ बार जपा था । सिद्ध महात्मा हो गए ।

हे मित्रो, इसी तरह आप भी क्यों नहीं सिद्ध महात्मा बन जाते ? इस कलिकाल में भगवत प्राप्ति तो बहुत अल्पकाल में हो सकती है । यह भगवन की कृपा का फल है जो आपको कड़ी तपस्या नही करनी पड़ती । प्राचीन समय की तरह इस युग में १०००० वर्षो तक एक पैर पर पर खड़े रहने की भी आवश्यकता भी नहीं है । थियोसोफी धर्मानुसार तो वर्तमान मूल ( हिन्दू ) जाति का मन बहुत विकसित है ।

में फिर कहता हूँ कि किसी मन्त्र के जप में मन को शुद्ध करने की बड़ी शक्ति है । जप करने से मन अन्तर्मुख हो जाता है और वासनाएँ क्षीण हो जाती है । वासना इच्छा का वह मूल बीज़ है जो इच्छा का संचालन करता है । इसको गुप्त प्रवृत्ति भी कहते है । मन्त्र का जप संकल्पो के वेग को कम कर देता है । जप मन को स्थिर करता है मन तनु मनांसि अर्थात सूत की तरह हो जाता है । मन सत्वगुण से पूर्ण हो जाता है जिसके फल स्वरूप शान्ति, पवित्रता और शक्ति आती है और इच्छाशक्ति प्रवल हो जाती है ।

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