रसायन चिकित्सा से रखें सेहत दुरुस्त

रसायन चिकित्सा

आयुर्वेद रसायन चिकित्सा

 
आयुर्वेद में एक बीमारी को ठीक करने के अनेक उपाय प्रयुक्त होते हैं । ऐसी ही एक विधि है रसायन चिकित्सा । इससे शरीर की चिकित्सा भी होती है और साथ ही सेहत भी दुरुस्त रहती है ।

हमारे देश में चिकित्सा की कई विधियां प्रचलित हैं । कुछ विधियां प्राचीन काल से प्रयोग में है, तो कुछ विधियां आधुनिक समय की उपज है । इसी प्रकार रसायन चिकित्सा भी देश में काफी पहले से की जा रही चिकित्सा विधि है । अष्टांग आयुर्वेद का एक अंग यह विधि आज भी लोगों के स्वास्थ्य, याददाश्त, त्वचा की चमक, शारीरिक क्षमता आदि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।

आयुर्वेद रसायन चिकित्सा प्रक्रिया

 
इसमें चिकित्सा के लिए रसायनों का प्रयोग किया जाता है, जो हमारे घर में मिलने वाले पदार्थों से ही बनाए जाते हैं । इस चिकित्सा विधि को रसायन तंत्र या जरा चिकित्सा के नाम से भी जाना जाता है । इससे बीमार व्यक्ति के अंगों की मरम्मत से लेकर उन्हें स्फूर्ति दायक भी बनाया जा सकता है । इस विधि से शरीर की कोशिकाओं की मरम्मत संभव हो पाती है और काफी कम समय में ही व्यक्त की त्वचा में नयापन दिखाई देने लगता है । हांलाकि इसमें व्यक्ति को खानपान में भी परहेज करने की सलाह दी जाती है, तभी रसायनों का लाभ भी मिलता है । इसमें अमलकी, हरीतकी, त्रिफला, बुरूंगराज, अश्वगंधा, पुनर्नवा, चित्रका अदि जड़ी बूटियों की मदद चिकित्सा में ली जाती है । मुख्य रूप से रसायन चिकित्सा से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से लाभ तो मिलता ही है, साथ ही साथ उसे त्रिदोष यानी वात, कफ और पित्त से भी छुटकारा मिलता है ।

आयुर्वेद रसायन चिकित्सा के प्रकार

 
रसायन चिकित्सा के एक प्रकार की मदद से ऐसे लोग की चिकित्सा की जाती है, जो लंबे समय तक चिकित्सा प्रणाली से जुड़े रहने में असमर्थ हैं । ऐसे लोगों को रसायनों का शार्ट पैकेज दिया जाता है, जिससे उनकी जीवन प्रक्रिया भी संपूर्ण होती रहे । इस प्रक्रिया में उनकी डाइट और दिनचर्या में परिवर्तन किया जाता है । साथ ही मरीज की उम्र, शारीरिक अवस्था आदि को ध्यान में रखते हुए उन्हें विभिन्न थेरेपी दी जाती है ।

रसायन चिकित्सा की एक और विधि यह है कि इसमें थोड़ी मुश्किल प्रक्रियाओं से मरीज को गुजरना पड़ता है । उन्हें विशेष रूप से बनाई गई कुटी में ले जाया जाता है, जहां आयुर्वेदाचार्य उनका इलाज करते हैं । यहाँ मरीज की सारी दिनचर्या गौर से देखी जाती है । साथ ही उसके रोग की पड़ताल करने के बाद उसकी चिकित्सा आरंभ की जाती है । यह ऐसी चिकित्सा विधि है, जिससे शरीर की पुरानी कोशिकाओं की मरम्मत भी संभव होती है । इसके तीन रूप है । पहले रूप में शरीर में शतावरी, दूध, घी अदि जैसे पोस्टिक पदार्थों की उपलब्धता को बढ़ाया जाता है । मरीज को खान-पान में ऐसे खाद्य पदार्थ दिए जाते हैं, जिनसे उसे विशेष लाभ हो । इसके अलावा उनकी जठराग्नि को प्रबल किया जाता है, जिससे फलताका, पिपली आदि जड़ी बूटियों की मदद भी ली जाती है ।

रसायन चिकित्सा के तीसरे रूप में शरीर में गुगल, तुलसी अदि औषधियों के माध्यम से शरीर के अंगों की क्षमता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है, जिससे शरीर धीरे-धीरे खुद ही व्याधि से उबर सकता है । कुल मिलाकर देश की प्राचीन चिकित्सा विधियों में से एक इस विधि से उपचार करने पर मरीज में नई चेतना का संचार हो सकता है । आधुनिक समय में इस तरह की उपचार विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि मनुष्य के शरीर के आंतरिक और बाहरी सारे अंगों का उपचार हो जाता है ।

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