संस्कृत धातु रुप, परिभाषा, प्रकार, उदाहरण – Dhatu Roop in Sanskrit

संस्कृत धातु रुप, परिभाषा, प्रकार, उदाहरण - Dhatu Roop in Sanskrit

संस्कृत में क्रिया (Verb in Sanskrit)

जिस शब्द के द्वारा किसी काम का करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते हैं। संस्कृत की क्रियायें जिन मूलों से बनती हैं, उन्हें धातु कहते हैं

जैसे- सः पुस्तकं पठति’ (वह पुस्तक पढ़ता है) वाक्य से ‘पठति’ (पढ़ता है) के द्वारा पढ़ने का होना पाया जाता है, अतः ‘पठति’ क्रिया है। वह “पठ्” मूल धातु से बनती है। अतः पठ् धातु है।

क्रिया के भेद (Types Verb in Sanskrit)

क्रियायें दो प्रकार की होती है- (१) सकर्मक, (२) अकर्मक ।

सकर्मक- वे क्रियायें हैं जो अपना कर्म रखती हैं, अर्थात् जिनके व्यापार का फल कर्त्ता को छोड़कर किसी अन्य पर पड़ता है, सकर्मक क्रियायें कही जाती हैं। क्रिया के आगे किसको’ अथवा ‘क्या’ लगने पर उत्तर में आने वाला शब्द ‘कर्म’ होता है। जैसे- ‘सः पुस्तकम् पठति’ (वह पुस्तक पढ़ता है) में ‘पठति’ क्रिया का फल पुस्तकम् पर पड़ रहा है और क्या पढ़ता है ? के उत्तर में भी ‘पुस्तकम्’ आता है अतः ‘पुस्तकम्’ कर्म है तथा ‘पठति’ क्रिया सकर्मक है।

अकर्मक- वे क्रियाएँ जो कर्म नहीं रखतीं तथा जिनका फल कर्त्ता पर ही पड़ता है अकर्मक क्रियायें कही जाती हैं। जैसे-सः स्वपिति (वह सोता है) में स्वप् सोने का फल सः कर्त्ता पर ही है अतः ‘स्वपिति’ क्रिया अकर्मक है।

संस्कृत में क्रिया के काल तथा प्रकार के लिए लकार का प्रयोग होता है। संस्कृत भाषा में १० लकार हैं किन्तु कक्षा ६, ७, ८ के छात्रों के लिए केवल ५ लकार हैं। ये पाँच लकार निम्न हैं-

(१) लट् लकार (वर्तमान काल), (२) लङ् लकार (भूतकाल), (३) लृट् लकार (भविष्यत् काल), (४) विधिलिङ् लकार (प्रेरणार्थक), (५) लोट् लकार (आज्ञार्थक)।

लकारों की पहचान

(1) लट् लकार (वर्तमान काल)

पहचान- वाक्य के अन्त में है’, हैं’, ‘हूँ’, ‘हो’ आते हैं। जैसे- वह पढ़ता है।

(2) लङ् लकार (भूतंकाल)

पहचान- वाक्य के अन्त में था, थे, थी, या ये. यी आते हैं, जैसे- वह गया, वे सब गये थे, वह जाता था।

(3) लोट् लकार (आज्ञार्थक)

पहचान- जिस वाक्य में आज्ञा प्रकट हो वहाँ लोट्लकार का प्रयोग किया जाता है, जैसे- तुम पढ़ो। वहाँ जाओ।

(4) विधिलिङ् (चाहिये के अर्थ में)

पहचान- जिस वाक्य में चाहिये शब्द का प्रयोग हो, वह विधिलिङ् का वाक्य होता है। जैसे- तुमको पढ़ना चाहिये ।

(5) लृट् लकार (भविष्यत् काल)

पहचान- जिस वाक्य के अन्त में गा, गी, गे आते हैं। जैसे- वह जायेगा। वह जायेगी। वे सब जायेंगे।

संस्कृत धातु रूप के पुरुष –

सर्वनामों की भाँति क्रियाओं में भी प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष तथा उत्तम पुरुष नाम के तीन पुरुष होते हैं।

प्रथम पुरुष- जिन क्रियाओं का प्रयोग प्रथम पुरुष के कर्त्ता (सः तौ, ते) आदि के साथ होता है, उन्हें प्रथम पुरुष कहते हैं।

मध्यम् पुरुष- जिन क्रियाओं का प्रयोग मध्यम पुरुष के कर्त्ताओं (त्वम्, युवाम्, यूयम्) के साथ होता है, वे मध्यम पुरुष की क्रियाएँ कही जाती हैं।

उत्तम पुरुष- जिन क्रियाओं का प्रयोग उत्तम पुरुष के कर्त्ताओं (अहम्, आवाम्, वयम्) के साथ होता है, वे उत्तम पुरुष की क्रियाएँ कही जाती हैं।

धातु रूप के पुरुषों का वर्गीकरण

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष सः (वह),

बालकः (लड़का),

भवान् (आप),

भवती ( )

तौ (वे दोनों),

बालकौ (दो लड़के),

भवन्तौ (आप दोनों),

भवत्यौ ( )

ते (वे सब),

बालकाः (लड़के),

भवन्तः (आप सब),

भवत्यः ( )

मध्यम पुरुष त्वम् (तू या तुम) युवाम् (तुम दोनों) यूयम् (तुम सब)
उत्तम पुरुष अहम् (मैं) आवाम् (हम दोनों) वयम् (हम सब)

धातु रूप में वचन

संज्ञाओं की भाँति क्रियाओं में एकवचन, द्विवचन और बहुवचन होते हैं और इनका प्रयोग क्रियाओं के कर्त्ता की भाँति होता है।

– संस्कृत में लिंग के कारण क्रियाओं में कोई अन्तर नहीं आता ।

– पुरुष तथा वचन के कारण क्रियाओं में होने वाला परिवर्तन निम्न चक्र से स्पष्ट हो जायेगा-

कर्त्ता के विभिन्न पुरुष तथा वचनों के साथ ‘पठ्’ = (पढ़ना) क्रिया का प्रयोग

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष (सः) पठति।

(वह) पढ़ता है।

(तौ) पततः।
(वे दोनों) पढ़ते हैं।
(ते) पठन्ति। (वे) पढ़ते हैं।
मध्यम पुरुष (त्वम्) पठसि। (तू) पढ़ता है। (युवाम्) पठथः।

(तुम दोनों) पढ़ते हो।

(यूयम्) पठथ।

(तुम) पढ़ते हो।

उत्तम पुरुष (अहम्) पठामि।

(मैं) पढ़ता हूँ।

(आवाम्) पठावः।
(हम दोनों) पढ़ते हैं।
(वयम्) पठामः।

(हम) पढ़ते हैं।

धातु रूप में पद

क्रियाओं के रूप जिस सारिणी के अनुसार चलते हैं, वे पद कहे जाते हैं। ये तीन हैं- (१) परस्मैपद, (२) आत्मनेपद, (३) उभयपद ।

परस्मैपद- जिसके रूप (पठति, पठतः, पठन्ति) की तरह चलते हैं, वे परस्मैपद कहे जाते हैं।

आत्मनेपद- जिसके रूप (सेवते, सेवेते, सेवन्ते) की तरह चलते हैं, वे आत्मनेपद कहे जाते हैं।

उभयपद- जिनके रूप उक्त दोनों प्रकार से चलते हैं, वे उभयपद कहे जाते हैं !

परस्मैपद धातु रूप सरंचना

पठ् धातु के रूप संस्कृत में – Path Dhatu Roop In Sanskrit

पठ् — पढ़ना (परस्मैपद)

1. पठ् धातु लट् लकार – वर्तमान काल के रूप (Present Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष पठति पठतः पठन्ति
मध्यम पुरुष पठसि पठथः पठथ
उत्तम पुरुष पठामि पठावः पठामः
2. पठ् धातु लोट् लकार के रूप – अनुज्ञावाचक (Imperative Mood)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष पठतु, पठतात् पठताम् पठन्तु
मध्यम पुरुष पठ, पठतात् पठतम् पठत
उत्तम पुरुष पठानि पठाव पठाम
3. पठ् धातु विधिलिङ् लकार के रूप – चाहिए के अर्थ में (Potential Mood)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष पठेत् पठेताम् पठेयुः
मध्यम पुरुष पठेः पठेतम् पठेत
उत्तम पुरुष पठेयम् पठेव पठेम
4.पठ् धातु लङ् लकार भूतकाल के रूप –  (Past Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष अपठत् अपठताम् अपठन्
मध्यम पुरुष अपठः अपठतम् अपठत
उत्तम पुरुष अपठम् अपठाव अपठाम
5.पठ् धातु लृट् लकार भविष्यत् काल के रूप –  (Future Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष पठिष्यति पठिष्यतः पठिष्यन्ति
मध्यम पुरुष पठिष्यसि पठिष्यथः पठिष्यथ
उत्तम पुरुष पठिष्यामि पठिष्यावः पठिष्यामः

आत्मनेपद धातु रूप सरंचना

सेव् धातु के रूप संस्कृत में – Sev Dhatu Roop In Sanskrit

सेव = सेवा करना (आत्मनेपद)

1. सेव धातु लट् लकार – वर्तमान काल के रूप (Present Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष सेवते सेवेते सेवन्ते
मध्यम पुरुष सेवसे सेवेथे सेवध्वे
उत्तम पुरुष सेवे सेवावहे सेवामहे
2. सेव धातु लोट् लकार के रूप – अनुज्ञावाचक (Imperative Mood)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष सेवताम् सेवेताम् सेवन्ताम्
मध्यम पुरुष सेवस्व सेवेथाम् सेवध्वम्
उत्तम पुरुष सेवै सेवावहै सेवामहै
 3. सेव धातु विधिलिङ् लकार के रूप – चाहिए के अर्थ में (Potential Mood)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष सेवेत् सेवेयाताम् सेवेरन्
मध्यम पुरुष सेवेथाः सेवेयाथाम् सेवेध्वम्
उत्तम पुरुष सेवेय सेवेवहि सेवेमहि
4. सेव धातु लङ् लकार भूतकाल के रूप –  (Past Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष असेवत् असेवेताम् असेवन्त
मध्यम पुरुष असेवथाः असेवेथाम् असेवध्वम्
उत्तम पुरुष असेवे असेवावहि असेवामहि
5. सेव धातु लृट् लकार भविष्यत् काल के रूप –  (Future Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष सेविष्यते सेविष्येते सेविष्यन्ते
मध्यम पुरुष सेविष्यसे सेविष्येथे सेविष्यध्वे
उत्तम पुरुष सेविष्ये सेविष्यावहे सेविष्यामहे

उभयपद धातु रूप सरंचना

नी धातु के रूप संस्कृत में – Ni Dhatu Roop In Sanskrit

नी = ले जाना (उभयपद)

1. नी धातु लट् लकार – वर्तमान काल के रूप (Present Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष नयति नयतः नयन्ति
मध्यम पुरुष नयसि नयथः नयथ
उत्तम पुरुष नयामि नयावः नयामः
2. नी धातु लोट् लकार के रूप – अनुज्ञावाचक (Imperative Mood)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष नयतु,नयतात् नयताम् नयन्तु
मध्यम पुरुष नय,नयतात् नयतम् नयत
उत्तम पुरुष नयामि नयाव नयाम
3. नी धातु विधिलिङ् लकार के रूप – चाहिए के अर्थ में (Potential Mood)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष नयेत् नयेताम् नयेयुः
मध्यम पुरुष नयेः नयेतम् नयेत
उत्तम पुरुष नयेयम् नयेव नयेम
4. नी धातु लङ् लकार भूतकाल के रूप –  (Past Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष अनयत् अनयताम् अनयन्
मध्यम पुरुष अनयः अनयतम् अनयत
उत्तम पुरुष अनयम् अनयाव अनयाम
5. नी धातु लृट् लकार भविष्यत् काल के रूप –  (Future Tense)
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष नेष्यति नेष्यतः नेष्यन्ति
मध्यम पुरुष नेष्यसि नेष्यथः नेष्यथ
उत्तम पुरुष नेष्यामि नेष्यावः नेष्यामः

 

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