Hindi Kahaniya (Moral stories) | Short Moral Story In Hindi

Moral Story In Hindi

Hindi Kahaniya (Moral stories) | Short Moral Story In Hindi | शिक्षाप्रद कहानियां

एक मोरल स्टोरी एक प्रकार की कहानी होती है जो किसी सीख या नैतिक मूल्य को समझाने के उद्देश्य से लिखी जाती है। इसमें आमतौर पर ऐसे पात्र होते हैं जो किसी चुनौती या विवाद से जूझते हैं, और कहानी का पॉइंट पात्रों की कार्रवाई और उनके फैसलों के चारों ओर घूमता है।

एक मोरल स्टोरी का उद्देश्य उस पाठक को एक नैतिक या नैतिक सबक प्रदान करना होता है जो उनके जीवन में लागू किया जा सकता है। इन कहानियों में अक्सर कुछ कार्रवाइयों के परिणामों को हाइलाइट किया जाता है और पाठकों को सकारात्मक या धार्मिक तरीके से काम करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

मोरल स्टोरी का इतिहास इतिहास में बहुत समय से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान और मूल्यों को पास करने के एक माध्यम के रूप में उपयोग किया गया है। वे नैतिकता और मूल्यों को उजागर करने के लिए अक्सर उदाहरण के रूप में उपयोग किए जाते हैं प्रस्तुत है आप के लिए कुछ नैतिक कहानियां।

[1] नैतिक कहानी: ईमानदारी देख उसका गुस्सा ठंडा पड़ा

कॉलेज के दिनों में पास ही स्थित एक बैंक में खाता खुलवाया था। ग्रेजुएशन खत्म होते ही मैं घर वापस आ गया। कई साल बीत गए, मैंने खाता चेक नहीं किया। एक दिन अपने खाते की जानकारी लेने बैंक गया, तो मालूम हुआ कि खाता बंद हो चुका है उसमें ₹578 है। किसी कारणवश में उस दिन पैसे नहीं निकाल सका। कुछ दिन बाद में दोबारा बैंक गया और मैनेजर से कहा, “सर मुझे खाते के रुपए निकालकर खाता बंद करना है।” उन्होंने मुझे दूसरे कर्मचारी के पास भेज दिया। मेरे पास पासबुक नहीं थी। यह बात मैंने कर्मचारी को बताई तो उसने काफी दुर्व्यवहार किया। इससे मुझे काफी गुस्सा आया, लेकिन कहा कुछ नहीं। उसने एक एप्लीकेशन लिखवाई और गवाह के हस्ताक्षर मांगे। मैं थोड़ी ही देर में हस्ताक्षर करवा लाया। फिर भी उसने मुझे परेशान किया। 3 घंटे बाद रुपए लेने का नंबर आया। कैशियर ने मुझे गलती से ₹578 की जगह ₹778 दे दिए। रुपए लेने के बाद मैंने उसे कई बार गिना भी। एक बार तो मैंने सोचा कि इसमें काफी परेशान किया था, मैं निकल लूं, लेकिन अंतर्मन की आवाज सुन मैं ऐसा ना कर सका और फिर से कैशियर के पास पहुंच गया। मैंने कहा, “सर आपने मुझे कितने रुपए दिए हैं।” वह बोलै, “₹578।” मैंने कहा, “नहीं सर,! आपने मुझे ₹२०० अधिक दिए हैं।” यह कहते हुए मैंने ₹200 वापस कर दिए। कैशियर बोला, “मैं अपने व्यवहार के लिए शर्मिंदा हूं।” मैंने फिर भी कहा -“सर आपकी व्यवहार के लिए धन्यवाद और वहां से निकल आया।

[2] नैतिक कहानी: आज भी याद आती है अमरुद वाली आंटी

बचपन की शरारतें है जब तब ताजा हो जाती है। स्कूल के रास्ते में कई घरों में अमरूद और जामुन के पेड़ लगे हुए थे। बस उन्हें चोरी से तोड़कर खाने का मजा ही कुछ और था। एक बार एक घर में दीवार फांद कर अंदर पहुंच गई और अमरूद तोड़कर घर के बाहर खड़े अपने दोस्तों की ओर फेंकने लगी। जब सबके हाथों में अमरूद आ गए, तो वे जोर-जोर से मुझे बुलाने लगे। शोर सुनकर घर की मालकिन बाहर आ गई। डर से बाहर खड़े दोस्त तो भाग निकले और मैं भी भागी, लेकिन मेरा बैग वही अंदर ही गिर गया। महिला बैग उठाकर अंदर ले गई। घर लौटी तो मम्मी ने बैंग के लिए पूछा, उन्हें सब सच-सच बता दिया। मम्मी ने कहा, ‘जाओ अपना पहले बैग लेकर आओ।’ मैं बहुत देर तक घर के बाहर खड़ी रही, लेकिन कॉल बेल बजाने की हिम्मत नहीं हुई। अचानक घर से बाहर वही महिला निकली, तो उसने मुझे रोते हुए देखा। उसने मुझे अंदर बुलाया। मैंने माफी मांगी तो बोली, ‘मैं तो कब से तुम्हारी राह देख रही थी। जाओ अपना बैग ले लो।’ साथ ही कहा, ‘अगर पेड़ से गिर जाती तो। अब जब भी अमरुद खाने हो तो घर आ जाना, मैं नौकर से कह कर तुम्हारे लिए मीठे-मीठे अमरुद तुड़वा दूंगी।, फिर आंटी ने मुझे ढेर सारे अमरुद भी दिए।

[3] नैतिक कहानी: रजाई आपके काम आएगी

सर्दी में ठिठुरते दादा को फटी पुरानी रजाई में लिपटे देख पोते से रहा नहीं गया। वह दौड़कर अपने कमरे में गया और अपनी शनील की रजाई लाकर दादा को ओढ़ा दी। बूढी आँखों से अश्रु धारा बह निकली। शायद पुत्र व् बहू की उपेक्षा पर पोते ने संजीवनी का लेप लगा दिया था।
“तू मुझसे कितना प्यार करता है बिटटू ” स्वर में कंपकपाहट स्पष्ट झलक रही थी। कोई गुर्राया,तो वातावरण स्तब्ध हो गया।
“पापा , मै दादा के पास आया था, कहानी सुनने”। अचानक पिता को पोते की रजाई ओढ़े देख कलयुगी पुत्र का पारा चढ़ गया। आपको शर्म नहीं आती,पोते की रजाई खींच ली। ” मै बेटा ———–।

“तू इस फटी रजाई को समेटकर कहाँ जा रहा है,बिटटू “। पान की पीक कोने में उछालते हुए पिता गरजा। “आप चिंता न करें डैड। मै इसे संभाल कर रखूंगा,फिर आप जब बूढ़े हो जायेंगें तो यह आपके काम आएगी। ” बिटटू के स्वर में निर्भीकता थी। कलयुगी पुत्र अपना अक्स देखकर शर्म से जमीन में गड़ गया।

[4] कहानी: मां की प्रेरणा से सीख गई गाड़ी चलाना

बड़े भाई को साइकिल चलाते देख मन मचलता था कि मैं भी साइकिल चलाऊं। तब मात्र में छह साल की थी। एक दिन दोपहर को जब घर के सारे लोग सो रहे थे, तो छोटी बहन के साथ भाई की साइकिल लेकर बाहर सड़क पर आ गई। बहन को कहा कि तुम पीछे से साइकिल पकड़ो। उसने वैसा ही किया। मैं साइकिल पर बैठ गई और उसे चलाने की कोशिश में लगी रही। अचानक मेरे दोनों पैर के नीचे पैदल आ गए और इसी बीच बहन ने साइकिल पीछे छोड़ दी। बस फिर क्या था,धड़ाम से गिरी। हाथ पैर बुरी तरह से छिल गए। आंसू पोंछकर और दर्द को दबाते हुए चुपचाप आकर सो गयी। सुबह मम्मी जब नहलाने लगी तो उन्होंने चोट देखीं। फिर मैंने सारी बात मम्मी को बता दी। मम्मी ने उस वक्त मरहमपट्टी कर के स्कूल भेज दिया। स्कूल से लौटने के बाद उनहोंने कहा,’चलो साईकिल बाहर निकालो। ‘ गेट से बाहर सड़क पर साईकिल निकाली और मम्मी एवं भाई ने मुझे साइकिल पर बिठाया। फिर तीन दिन बाद मुझे साइकिल चलानी आ गई। मां की ही प्रेरणा से साइकिल चलाना सीखा। जी हाँ, अब तो चार पहिए वाली गाड़ी ही खूब अच्छी तरह चलाती हूं।

[5] कहानी: धत इसी को फिल्म देखना कहते हैं

एक दिन अंकल से मैंने कहा कि आज मुझे फिल्म देखने आपके साथ जाना है। पहले तो उन्होंने मना किया, लेकिन बाद में मेरी जिद की वजह से वह मान गए। शाम को फिल्म देखने का प्रोग्राम बना। हम दोनों सिनेमा हॉल पहुंचे तब कौन सी फिल्म लगी थी, यह तो याद नहीं पर इससे पहले किसी एक जगह इतनी भीड़ नहीं देखी थी। अंकल मेरी उंगली पकड़कर सिनेमा हॉल के “इन गेट” से कैंपस में दाखिल हुए एक-एक कर उन्होंने कैंपस की दीवारों पर चिपके पोस्टर्स को दिखाना शुरू किया। और लोग भी थे, जो उन पोस्टर्स को चाव के साथ देख रहे थे। क्रम से मैं भी देखता गया। अंकल पोस्टर पर कहानी समझाते जा रहे थे। लगभग 20 मिनट बाद मुझे लेकर ‘आउट गेट’ की तरफ बढ़े। उस तरफ एक गैलरी में महिलाओं के लिए प्रतीक्षालय बना था। मैंने पूछा, ‘यह यहां क्यों बैठी हैं’। अंकल ने बताया कि हमारे जाने के बाद यह फिल्म देखेंगी, अभी भीड़ है। इतना कहते हुए वे मुझे लेकर सड़क पर आ गए।

मैं बड़ा हैरान हुआ कि अंकल मुझे सिनेमा हॉल के बाहर लेकर क्यों आ गए। मैंने अंकल से पूछा, ‘हम फिल्म कब देखेंगे’? उनका जवाब था,
‘अभी तो दिखाया,अब क्या बार-बार एक ही चीज देखते रहेंगे’। मैंने कहा, धत ‘ इसी को फिल्म देखना कहते हैं। इससे अच्छा हमारे गांव का बाइस्कोप है। जिसमें आवाज भी आती है और मजा भी’।

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