भक्त ध्रुव की ध्रुव तारा बनने की पौराणिक कथा

bhakt dhruv story

भक्त ध्रुव की पौराणिक कथा

 
राजर्षि मनु के पुत्र उत्तानपाद की दो स्त्रियाँ थी, सुरुचि और सुनीति । सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था और सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव । एक दिन उत्तम अपने पिता उत्तानपाद की गोद में बैठे थे । इतने में ध्रुव भी पिता के पास आये और उनकी गोद में बैठना चाहा । उत्तम की माता सुरुचि के डर से उत्तानपाद ने ध्रुव को गोद में उठाने के लिए हाथ तक न बढ़ाया और सुरुचि ने तो ध्रुव को ताना मारा । सौतेली माता के वचनो से ध्रुव के कोमल हृदय में चोट लगी और दुखी होकर वे सीधे अपनी माता के पास गए और उन्होंने सब हाल कहा । सुनीति ने अपने पांच बरस के पुत्र को तप करने की सलाह दी । अपनी माता की आज्ञानुसार ध्रुव तुरंत तप करने के लिए घर से निकल पड़े । राह में उन्हें नारद जी मिले ।

नारद ने ध्रुव का अभिप्राय जानकर उनसे कहा —“बेटा ध्रुव अभी तुम अबोध बालक हो । जिसकी प्राप्ति कठिन योगाभ्यास , ध्यान और जितेन्द्रिय द्वारा कई जन्मो में की जाती है जिसे तुम कैसे पा सकोगे ? अभी तुम ठहरो । जब तुम संसार के सुखो का भोग कर लो और जब तुम वृद्ध हो जाओ तभी तुम प्रयत्न करना ।”

किन्तु ध्रुव अपने संकल्प पर द्रढ़ रहे और उन्होंने नारद जी से शिक्षा पाने का आग्रह किया । ध्रुव को द्रढ़ प्रतिज्ञ देखकर नारद जी ने द्वादशक्षर मंत्र का उपदेश देकर मथुरा में जाकर तप करने की आज्ञा दी और कहा की भगवान मथुरा में गुप्त रूप से सदा वास् करते है । ध्रुव ने मथुरा जाकर घोर तपस्या करना आरम्भ कर दिया । वे एक पैर पर खड़े रह और केवल हवा पीकर तप करने लगे । अंत में ध्रुव ने श्वास पर विजय पा ली और गंभीर ध्यान द्वारा उन्होंने ह्रदय में निरंजन ज्योति के दर्शन कर लिए । भगवान ने हृदय से उस ज्योति को खींच लिया तो ध्रुव की समाधी टूट गई और आंख खोलते ही उन्हें सामने ही भगवान के दर्शन हो गए । प्रसन्नता के मरे ध्रुव अवाक् रह गए ।

भगवान ने ध्रुव से कहा -“हे क्षत्रिय बालक में तेरी प्रतीज्ञा जानता हूँ । तुम बड़े समृद्धशाली होंगे में तुम्हे वह स्थान देता हूँ जहाँ सदा मुक्ति रहती है । वह चारो तरफ से नक्षत्र मंडल से घिरा है । एक कल्प तक जीवित रहने वाले की मृत्यु हो जाएगी किन्तु वह स्थान अक्षय रहेगा । धर्म, अग्नि, कश्यप, इंद्र और सप्तऋषि तथा अन्य तेजस्वी नक्षत्र सदा उस स्थान की परिक्रमा लगाया करते है । तुम अपने पिता के बाद राज सिंघसान पर बैठोगे और ३६ हजार वर्ष राज करोगे । तुम्हारा भाई उत्तम एक वन में जाकर अदृश्य हो जायेगा अपने पुत्र को ढूंढते तुम्हारी विमाता जंगल में मर जाएगी । अंत में तुम हमारे उस स्थान पर आओगे जो ऋषियों और देवताओ के सब स्थानों से ऊपर है और जहाँ पहुंचकर फिर कोई वापस नहीं आता ।”

तप करने के बाद ध्रुव घर लोट आये । उनके पिता भक्त ध्रुव को राजसिंहासन देकर तप करने जंगल में चले गए । शिशुमार की लड़की भ्रमी के साथ ध्रुव का विवाह हुआ और कल्प और वत्सर नामक उनके दो पुत्र हुए । इला नामक दूसरी स्त्री से उनके उत्कल नामक एक और पुत्र हुआ ।

जंगल में आखेट करते समय उत्तम एक यक्ष द्वारा मारा गया । अपने भाई के मारे जाने का बदला लेने के लिए ध्रुव ने उत्तर डिश पर चढाई की । युद्ध में हजारो निर्दोष यक्ष और किन्नर मारे गए । मनु को यक्षों पर बड़ी दया आई और उन्होंने स्वयं आकर अपने पौत्र को युद्ध करने से रोका । ध्रुव ने मनु जी की आज्ञा का पालन किया इस पर यक्षों के राजा कुबेर ध्रुव से प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया । ३६ हजार वर्षो तक पृथ्वी पर राज्य करके ध्रुव नन्द और सनंद नामक दो विष्णु पार्षदों के साथ अक्षय विष्णु पद को रथ पर चढ़ कर चले गए ।

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