उपासना क्या है : उपासना सिद्धांत

Meditation

क्या है उपासना-

 

उपासना का मतलब किसी से ज्ञान प्राप्त करने के लिए छोटा आसन लेकर उसके पास बैठना नहीं, बल्कि विचार वह भावना के द्वारा मनन करना ही उपासना है ।

उपासना का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना होता है । कोई भी उपासना तभी फलदाई होती है, जब उसमे पूरे नियमों का पालन किया गया हो । सामान्य रूप से अखंड चिंतन में मग्न रहने वाले तथा सर्वसंग परित्याग करके विश्व हित के कार्यों में रत सत्पुरुष की उपासना अभ्युदय एवं मोक्ष मार्ग की तरफ ले जाती है । अर्थात कुल देवता की अवहेलना करने पर साधक हमेशा असफल होता है । उपासना से शांति, आनंद, उत्साह, उमंग व ऊर्जा की प्राप्ति होती है ।

उपासना मूलतः भाव प्रधान होती है । उपासना में मन के नियंत्रण का अभ्यास मुख्य होता है । मन में उठने वाली इच्छाओं को, इंद्रियों के व्यापार को आत्मा की ओर मोड़ने का प्रयास किया जाता है । इसलिए शीघ्र फल प्राप्त करने के लिए उपासना का मार्ग अच्छी तरह परख लें, फिर वह खंडित नहीं होना चाहिए । उपासना उचित होते हुए भी उसमें बार-बार फेरबदल करने पर उसका पर्याप्त फल प्राप्त नहीं होता ।

उपासना मन का क्षेत्र है । इसलिए इसमें मन को साधना जरूरी होता है । उससे एकाकार हो जाना, स्वयं के अस्तित्व को उसी में देख पाना उपासना होती है । इसमें शरीर और बुद्धि दोनों ही गौड़ हो जाते हैं । जब मन स्वयं आत्मा में लीन हो जाए, तब वह आनंद-विज्ञान से जुड़ा अव्वय मन बन जाता है । उपासना का शरीर के साथ संबंध नहीं होता । मन को मंदिर बना कर इष्ट को प्रतिष्ठित करने का मार्ग है । उपासना प्रेममय होती है । इसमें आत्मा का परिष्कार तेजी से होता है । संशय या शंका को कोई स्थान नहीं मिलता । इसमें भक्तों की श्रद्धा के साथ-साथ गुरु का तप और देने का भाव अधिक महत्वपूर्ण है । भक्ति का यही स्वरूप है । किसी भी देवी-देवता की आराधना यदि पूरे मनोयोग से करते हैं, तो लाभ अवश्य मिलता है । जो साधक प्रतिदिन गुरुचरित्र पढ़ने से पहले देवी का स्त्रोत पढ़ते हैं, उन्हें गुरु उपासना के फल अति शीघ्र प्राप्त होते हैं ।

मंगल मूर्ति की उपासना-

 

भगवान गणेश जीवन पद्धति के सभी सूत्रों में सर्वप्रथम हैं । घर में कैसा भी कार्यक्रम हो, सबसे पहली निमंत्रण पत्रिका गणेश जी को समर्पित की जाती है और भगवान के सम्मुख पीले चावल रख कर ‘गणपति बाबा’ को न्योता दिया जाता है । विश्वास है कि इससे सारी बाधाएं अपने आप दूर हो जाती हैं और सब कार्य निर्विघ्न एवं सहज स्वाभाविक तौर पर संपन्न हो जाते हैं । इसलिए इनको मंगल मूर्ति भी कहा गया है ।

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