नैतिक कहानी: दीपावली की खुशियां बांटूंगा

नैतिक कहानी: दीपावली की खुशियां बांटूंगा

दीपावली के मौके पर मम्मी-पापा हमेशा हिदायत देते कि पटाखे छोड़ते समय हमेशा दूसरों की सुरक्षा का ख्याल रखना चाहिए। इन बातों से बेपरवाह मेँ पटाखे हाथ में लेकर छोड़ता और कभी कभी राहगीरों पर भी पटाखे जलाकर फेंक देता था। पिछले साल मेने ऐसा ही किया था।

उस रात गली में हम पटाखे छोड़ रहे थे। कुछ देर तक पापा हमारे साथ खड़े रहे और फिर हमें हिदायत देते हुए अंकल के साथ घर में चले गए। हमारे मुहल्ले में कई लोगों का आवागमन चल रहा था। तभी एक आदमी साइकिल से आता दिखाई दिया। मेरे दिमाग में शरारत सूझी और जैसे ही हमसे थोड़ी दूरी पर पहुंचा,मेने एक बढ़ा सा बम लेकर उसकी और फेक दिया। बम ठीक उसकी साइकिल के हेंडल के पास फटा और चिल्लाता हुआ वह जमीन पर गिर पढ़ा। यह देखते ही सभी हस्ते हुए तालियां बजाने लगे। में भी खुश था। पर वः व्यक्ति उठकर रोने लगा। असल में वह अपने बीमार बच्चे के लिए दवाइयां लेकर जा रहा था और गिरने की वजह से उसकी दवाई की शीशी फूट गयी थी। उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह दुबारा दवाई खरीदता। तभी मेरे पापा हंगामा सुनकर बाहर आये और उस व्यकित की तकलीफ समझते हुए उससे छमा मांगते हुए उसे रूपये दिए। फिर हम सबको खूब डांटा।

तब मेने भी प्रण किया कि अब हर दीपावली को खुशियां बाटूंगा,शरारत नहीं।

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