विजयादशमी का महत्व
विजयादशमी के दिन विजय नामक मुहूर्त होता है यह मुहूर्त किसी भी कार्य में सिद्धि प्रदान करता है ।
नवरात्र में नो दिनों तक शक्ति की प्रतीक देवी दुर्गा की पूजा की जाती है । इसके बाद दसवें दिन मां की मूर्ति की विसर्जन प्रक्रिया पूरी की जाती है । इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया ।
श्री राम की विजय के बारे में एक प्रसंग यह भी है कि जब राक्षस राज रावण के अनुज विभीषण ने कवच धारी, रथ पर सवार विभिन्न अस्त्र शास्त्रों से सुसज्जित रावण के सामने नंगे पांव, बिना कवच पहने तीर धनुष से लैस श्री राम को देखा, तो व्याकुल हो गया । उसने कहा, ‘हे भगवान, इस बलशाली रावण के साथ आप कैसे युद्ध कर सकेंगे?’ तब श्री राम ने कहा, ‘हे विभीषण, मैं धर्म के रथ पर सवार हूं । शौर्य और धैर्य उसके दो पहिए हैं, सत्य और सदाचार उसकी पताकाएँ हैं, बल, विवेक परोपकार मेरे रथ के अनुपम अश्व है, जो दया, क्षमा और समता रूपी डोर से जुड़े हुए हैं । इसलिए मेरी विजय निश्चित है ।’
इसलिए इसे ऐतिहासिक दिन भी कहा जाता है । यह दिन महाभारत से भी जुड़ा है क्योंकि अर्जुन ने इसी दिन द्रोपति को स्वयंवर में जीता था और महाभारत का युद्ध भी इसी तिथि यानी आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आरंभ हुआ था । वैसे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चूकि इस तिथि को तारकोदय के समय विजय नामक मुहूर्त काल होता है, इसलिए इसे विजयादशमी भी कहा जाता है, जो हर तरह के कार्यों में सिद्ध प्रद माना जाता है । इसे दशहरा भी कहते हैं ।
शास्त्रों के अनुसार विजयदशमी का पर्व हमारे अंदर दस दोषो काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, ईर्ष्या, द्वेष, दुराचार, मिथ्याचार को समाप्त करने का मौका है ।
यह पर्व इस बात का साक्षी है कि अकूत संपत्ति, कला-कौशल और पांडित्य से युक्त होने पर भी जो व्यक्ति दुराचार, दुराग्रह, अनैतिकता में लिप्त रहता है, उसका पतन व विनाश निश्चित है । इसलिए रावण का विनाश हुआ, जबकि रावण का वध करने वाले श्री राम ने संपूर्ण जनमानस को अपनी मर्यादाओ और देवीय गुणों का सदुपयोग करते हुए साद विचारों का अनुसरण करने की प्रेरणा दी ।
विजयदशमी पर शमी वृक्ष के पूजन का महत्व
इस दिन अपराजिता और शमी वृक्ष के पूजन का भी विशेष महत्व है । जब भगवान श्री राम लंका विजय कर अयोध्या वापस लौटे थे, जब अयोध्या वासियों ने शमी पत्र को स्वर्ण के रूप में एक दूसरे को दिया था । इसलिए इसे है ऐश्वर्य और समृद्धि का सूचक भी माना जाता है । वैसे शमी पत्र भगवान विष्णु को प्रिय है और इसे विष्णुकांता भी कहते हैं । इसलिए विजयदशमी को उसकी पूजा करने का भी विधान है ।