Mangala Gauri vrat : मंगला गौरी व्रत का महत्व व व्रत विधि

Mangala Gauri vrat : मंगला गौरी व्रत का महत्व व व्रत विधि

मंगल दोष दूर मंगला गौरी व्रत से

श्रावण मास में हर मंगलवार को किया जाने वाला मंगला गौरी व्रत न केवल गृहस्त महिलाओं, बल्कि अविवाहित कन्याओं के लिए भी लाभप्रद माना गया है । इस व्रत से मंगल दोष भी दूर होता है

श्रावण मास आरंभ होने के साथ ही पूजा-पाठ का दौर शुरू हो जाता है । सोमवार को भगवान शिव को जल अर्पित करने के अगले दिन मंगलवार को महिलाओं का मंगलागौर व्रत आता है । इस व्रत से महिलाएं देवी गौरी से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति, इच्छित वर तथा वैधव्य हरण के आशीर्वाद की कामना करती हैं । क्योंकि यह व्रत सावन महीने के हर मंगलवार को किया जाता है और इसमें देवी मंगला गौरी की पूजा की जाती है, इसलिए इसे मंगला गौरी व्रत कहते हैं । कहा जाता है कि इस व्रत से मांगलिक दोष भी शनैः शनैः समाप्त हो जाता है । इसलिए भी यह व्रत विशेष माना जाता है । यह व्रत सावन माह से लेकर करीब 16 अथवा 20 मंगलवार तक अथवा हर साल करीब ४- ५ वर्ष तक में रखने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है ।

इस व्रत का अनुष्ठान प्राचीन काल में विमला पुरी के राजा चंद्रप्रभ ने अप्सराओं के आदेशानुसार अपनी रानी विशालाक्षी से करवाया था । लेकिन उनकी बड़ी रानी मंदाविता ने इस व्रत की अवहेलना कर इसे तोड़ दिया था, जिसके फलस्वरूप वह विक्षिप्त हो गई । और गौरी कहां है, कहते हुए, इधर-उधर भटकने लगी । तत्पश्चात मां गौरी की कृपा से मंगलागौरी व्रत कर पूर्व अवस्था को प्राप्त होकर सुखी जीवन व्यतीत करने लगी ।

मंगला गौरी व्रत विधि

इस दिन प्रात काल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प इस मंत्र से लेना चाहिए

ममकायिक वाचिक मानसिक,
सांसर्गिक त्रिविध ताप निवराणार्थ
पुत्र-पौत्र प्राप्त्यर्थ आयुः आरोग्य
अभिवृद्धयर्थ च मंगला गौरी कृपा
प्राप्त्यर्थ मंगलागौरी व्रत अहं करिष्ये ।

इसके बाद लाल वस्त्र बिछाकर इस पर मां गौरी की तस्वीर या प्रतिमा रखें । इसके बाद पूर्वाविमुख बैठकर मां के सम्मुख आटे का 16 बत्तियों वाला चौमुखा दीपक जलाकर कलश तथा गौरी-गणेश की स्थापना करें । तदोपरांत निम्न मंत्र से मां का ध्यान करना चाहिए ।

कुंकुमगुरुलिप्तांग सर्वाभरणभूषितां । नीलकंठ प्रियां गौरीवंदेहं मंगलाध्यानं ।

तत्पश्चात सबसे पहले गणेश जी, उसके बाद कलश का सिंदूर फूल बेलपत्र आदि चढ़ाकर पूजन करना चाहिए । इसके बाद नवग्रह के निमित्त चावल की नो ढेरियां तथा गेहूं की 16 ढेरियां बनाकर सिंदूर, हल्दी, मेहंदी चढ़ाकर पूजा करें । फिर देवी गौरी को जल, दूध, दही, घी, चीनी, शहद से बने पंचामृत से स्नान कराएं और वस्त्र पहनाकर सिंदूर, हल्दी, काजल, 16 तरह के फूल आदि अर्पित कर सोलह सिंगार करके आरती पूजन करें । तत्पश्चात 16 लड्डू, 16 फल, पंचमेवा, सात अनाज, 16 पान, सुपारी, लोंग, इलायची, चूड़ी व सुहाग का सामान सभी 16 की गिनती में चढ़ाकर दक्षिणा अर्पित करें । आरती करने के बाद मंगलागौरी व्रत कथा सुने । इसके बाद मंगल स्त्रोत का पाठ कर व्रत का समापन करना चाहिए । इसके बाद 16 लड्डू अपनी सास को और शेष सामग्री ब्राह्मण को दान कर देनी चाहिए । जो भक्त 5 वर्ष तक व्रत रख रहे हैं, उन्हें इस का उद्यापन भी श्रावण मास में ही करना चाहिए ।

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