नैतिक कहानी: चूहा और गिलहरी

नैतिक कहानी: चूहा और गिलहरी

एक था चूहा और एक थी गिलहरी। चूहा शरारती था दिनभर ची ची करता हुआ मौज उड़ाता। गिलहरी भोली थी। टी टी करती हुई इधर-उधर घूमती रहती। एक दिन दोनों की मुलाकात हो गई। अपनी प्रशंसा करते हुए चूहे ने कहा, मुझे लोग मूषक राज कहते हैं। और गणेश जी की सवारी के रूप में जानते हैं। मेरे पैने-पैने हथियार सरीखे दांत लोहे के पिंजरे को तो क्या किसी भी चीज को काट सकते हैं।

मासूम गिलहरी को यह बात सुनकर बड़ा बुरा लगा। बोली, भाई तुम दूसरों का नुकसान करते हो, फायदा नहीं। अगर अपने दांतो पर तुम्हें इतना ही गर्व है तो इससे कोई नक्काशी क्यों नहीं करते। इनका उपयोग करो तो जानू। तुझमे मेरे जैसा कोई गुण तो नहीं है। पर मेरे शरीर में तीन धारियों को देख रहे हो ना, बस यही मेरी खास चीज है। जो दाना-पानी मिल जाता है, उसका कचरा साफ करके संतोष से खा लेती हूँ।

चूहा बोला तुम्हारी तीन धारियों की विशेषता क्या है। गिलहरी ने जवाब दिया। आसपास दो काली धारियां है, उनके बीच में एक सफेद है। इसका मतलब है कि कठिनाइयों की परत के बीच असली सुख झांकता है। दो काली अंधेरी रातों के बीच ही एक सुनहरा दिन छुपा रहता है। सुनकर चूहा लज्जित होकर वहां से भाग गया।

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