फिर भी नहीं रुका अमन । हिंदी प्रेरक कहानी

हिंदी प्रेरक कहानी- फिर भी नहीं रुका अमन

 

अमन मात्रा आठ साल का था शरीर पर आधा-अधूरा, फटा-चिथड़ा कपड़ा था । ऊपर से कड़ाके की ठंडी सुबह पांच बजे ही एक प्लास्टिक का बोरा लेकर रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ा । ट्रैक पर जो भी कूड़ा-कबाड़ था, उसे बोरे में भर लिया । अमन चुने हुए कूड़े को ले जाकर हर दिन बेचता था । उससे जो भी पैसे मिलते, अपनी मां को दे देता । घर में मां के अलावा एक छोटी बहन भी थी ।

पिता जी दो साल पहले ही स्वर्ग सिधार गए थे । ऐसे में अमन के कंधों पर घर की जिम्मेदारी थी । कबाड़ बेच कर जो भी पैसे मिलते वो घर के खर्च के लिए पूरे नहीं पड़ते थे । इतनी महंगाई में उनका गुजारा करना मुश्किल हो रहा था ।

घर का एकमात्र काम करने वाला वहीं ही तो था । इसलिए वह रात में एक होटल में प्लेट धोने का काम भी करना शुरु कर दिया था । इससे अमन की आमदनी बढ़ गई । अभी से ही अमन अपनी बहन की शादी के लिए पैसा इकट्ठा करने लगा । धीरे-धीरे बहन की शादी के लिए उसने पैसे जुटा लिए । अगली सुबह अमन बोरा लेकर रेलवे स्टेशन पर चल पड़ा ।

उस दिन ठण्ड जयादा थी । कोहरा घना था इस लिए पास की चीजे साफ-साफ नजर नहीं आ रही थी । तभी उसे ट्रैन आने की आवाज सुनाई दी । अमन ने सोचा ट्रैन दूसरे ट्रैक पर आ रही है । अभी यह सोच ही रहा था कि अचानक जोरदार झटके के साथ अमन ट्रैक के नीचे आ गया । ट्रेन जा चुकी थी । लेकिन अमन के दोनों पैर बेकार हो गए थे । अमन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया । उसे अपने परिवार की चिंता थी । हालांकि विकलांग होने के बाद अमन को सरकार और दूसरों से काफी मदद मिली । लोगों से मिली मदद ने अमन के हौसले को बढ़ाया । उसने एक चाय की दुकान खोली, जिससे पूरे परिवार का खर्चा चलता है । उसने विकलांगता को कभी भी अभिशाप नहीं बनने दिया ।

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One Thought to “फिर भी नहीं रुका अमन । हिंदी प्रेरक कहानी”

  1. अमन की कहानी बहुत प्रभावशाली थी अमन से हम लोगों को सीख लेनी चाहिए

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