नैतिक कहानी: तमाचा

दफ्तर से लौट कर आने पर राहुल का चेहरा खिला-खिला न पाकर उसके पंडित मित्र दीनानाथ ने पूछा, ‘आज तू उदास क्यों है, मेरे यार?’ राहुल बोला, ‘आज मेरे दफ्तर के सामने वाली सड़क पर मेरी टक्कर एक ट्रैक्टर से हो गई। मैं तो किसी तरह बच गया, मगर….मगर।’ मगर क्या? दीनानाथ ने चौंक कर पूछा, मानो कि राहुल का बड़ा नुकसान हो गया हो।

राहुल बोला, ‘मैं तो बच गया, लेकिन वह टैक्टर वाला मुझे बचाने के चक्कर में अपना संतुलन नहीं बना पाया और उसका ट्रैक्टर एक पेड़ से जा टकराया। उसका सिर सड़क से टकराया और उसकी वही पर मृत्यु हो गई। इस पर दीनानाथ ने कहा, ‘तुझे तो कुछ नहीं हुआ। तेरा तो कोई नुकसान नहीं हुआ। अरे यह तो दुनिया है, इसमें आना -जाना तो लगा ही रहता है, तू तो बेकार में दुनिया का बोझ अपने सिर पर लाद रहा है। शुक्र है, ऊपर वाले का, तू तो सही सलामत बच गया।’ राहुल का मन हुआ कि दीनानाथ का मुँह अपने हाथों से बंद कर दे, तो अच्छा रहेगा।

अब दीनानाथ ने पूछा, ‘फिर उन्होंने पूछा कि अच्छा मरने वाला हिंदू था या मुसलमान?’ राहुल यह बात पचा न पाया और वह गुस्से में बोला, ‘बंद करो यह बकवास। मरने वाला ना तो हिंदू था और ना ही मुसलमान। वह एक इंसान था। यह सुनते ही दीनानाथ को लगा कि वह कोई बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। जिसे सुधारने के लिए राहुल बड़े प्रेम से उनके गाल पर एक तमाचा रसीद कर रहा हो।

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