नैतिक कहानी: किसी का उपहास करना ठीक बात नहीं

मेरा एक दोस्त बरेली में रहता है। वह काफी कुशाग्र है। जब भी मैं किसी परेशानी में आता हूं, तो वह मेरी मदद करता है। पर वह अपने ऊपर
इठलाने वाले लोगों से काफी चिढ़ता है। कैरम के खेल में उसे महारत हासिल है। लेकिन इस बात का वह घमंड नहीं करता। एक बार वह मेरे शहर में आया था। हम दोनों दोस्त साथ-साथ खूब घूमते रहेते।

एक दिन मेरी कॉलोनी में कुछ लड़के कैरम खेल रहे थे। हम दोनों टहलते हुए उनके पास खड़े होकर उनका खेल देखने लगे। उन लोगों ने हमसे भी कैरम खेलने का आग्रह किया, पर हमने मना कर दिया, तो वे हमारा मजाक उड़ाने लगे। एक ने तो कह दिया कि शायद कैरम खेलना आता नहीं होगा। यह सुनकर मुझे गुस्सा आ गया। उन लोगों ने ₹500 शर्त की पेशकश भी कर दी। हमारे पास पैसे नहीं थे। पर मेरे दोस्त ने तुरंत हामी भर दी। थोड़ी देर में खेल शुरू हुआ। मेरा दोस्त ऐसे खेला कि 10 मिनट में ही वे चित्त हो गए। उन्होंने फिर से शर्त की पेशकश की। इस बार मैंने राशि ₹1000 करवा दी।

एक बार फिर हमने उन लड़कों की टीम को बुरी तरह हरा दिया। अब तो उनके पसीने छूटने लगे क्योंकि उनके पास भी रुपए नहीं थे। मैंने उनसे ₹1500 की मांग की, तो वे बंगले झाँकने लगे। अब उन्हें अपने किए पर शर्मिन्दिगी हो रही थी। तब मैंने उन लड़कों को अपने दोस्त का परिचय दिया और बोला बिना जाने-समझे किसी का मजाक उड़ाना ठीक बात नहीं। अगर तुम किसी चीज को अच्छी तरह से जानते हो, तो इसका मतलब यह नहीं कि दूसरों का उपहास करो।

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