उद्धरण

समस्याएं भी वरदान हो सकती हैं

जीवन विधेय और निषेध का युग्म है । सुख-दुख, दिन-रात और उत्थान-पतन जीवन और जगत के शाश्वत सच है । सामान्य व्यक्ति दुख में परेशान होने लगता है, जबकि उसे याद रखना चाहिए कि धूप के बाद ही छांव और रात के बाद दिन अवश्य आते हैं । हर व्यक्ति समस्याओं से घिरने के बाद त्राहि-त्राहि करने लगता है और उनकी कल्पना से भी कतराते हैं । पर सच तो यह है कि समस्याएं और शत्रु दु:खदायी नहीं, बल्कि वरदाई होते हैं ।

कुछ मामलों में तो लोगों को विशेष उपलब्धि समस्याओं एवं शत्रुओं के कारण ही प्राप्त होती है । असल में शत्रु जिस तरह का होता है, व्यक्ति भी उससे लड़ने के लिए उतना ही सक्षम हो जाता है । भले ही वह वैचारिक शत्रु हो या शरीर को हानि पहुंचाने वाला । अगर आपको वैचारिक शत्रु से हानि की आशंका है, तो आप खुद को उससे अधिक बौद्धिक क्षमता वाला बनाने का प्रयास करेंगे, जो आपके भविष्य के लिए अच्छा रहेगा ।

इसलिए अगर आप किसी संस्थान में काम कर रहे हैं और वहां कुछ लोग एकजुट होकर आपको हानि पहुंचाने का प्रयत्न कर रहे हैं, तो उसे भगवत कृपा समझे क्योंकि आपका सौभाग्य यह है कि आप उन दुष्टों की सेना में शामिल नहीं है । इस प्रकार आप कुत्सित विचार धारा के प्रभाव में आने से भी बच जाएंगे । वरना आपका भी वैचारिक पतन सुनिश्चित था ।

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